जालन्धर बंध : वात, पित्त,कफ एवं रक्त से संबन्धित किसी भी बीमारी के लिए चमत्कार
वात, पित्त,कफ एवं रक्त के प्रवाह के लिए चमत्कार
जालन्धर बंध करने से दिल, दिमाग और मेरुदंड की नाड़ियो में रक्त संचार सुचारू रूप से संचालित होता रहता है, जालन्धर बंध "यौगिक बंध" का ही एक प्रकार है ।
हमारे सिर में बहुत सी वात नाड़ियों का जाल होता है, इन्हीं के द्वारा हमारे शरीर का संचालन होता है वात नाड़ियों में पर्याप्त वात, पित्त,कफ एवं रक्त के प्रवाह के लिए आवश्यक होता है की आपका शरीर स्वस्थ रहे और शरीर को स्वस्थ रखने में जालंधर बंध की महत्वपूर्ण भूमिका होती है |
सांस भरकर गले की नसों का संकुचन करने से वात, पित्त,कफ एवं रक्त की समस्त नाड़ियों पर प्रभाव पड़ता है तथा वह सक्रिय हो उठती हैं जिससे वे अपना कार्य और बेहतर ढंग से करने लगती हैं | जालंधर बंध को करने से हमारे सिर का व्यायाम भी हो जाता है और हम स्वस्थ रहते हैं।
जालन्धर बंध की विधि:
- जालन्धर बंध को करने के लिए सबसे पहले किसी समतल जमीन पर कंबल या दरी बिछाकर पद्मासन, बज्रासन या सुखासन की स्थिति में बैठ जाएं।
- अपने शरीर को एकदम से सीधा रखें ।
- अपनी गर्दन के भाग को इस तरह से झुकाएं जिससे आपका गला और ठोड़ी आपस में स्पर्श हो जाए।
- सिर और गर्दन को इतना झुकाएं कि ठोड़ी की हड्डी के नीचे छाती के भाग को स्पर्श करे |
- इस दौरान आंतरिक कुंभक लगा होना चाहिए तथा निरंतर रेचन क्रिया के बाद कुंभक लगाते हुए |
- अपनी ठोड़ी को नीचे लाने और फिर ऊपर उठाकर सीधा करने का क्रम चलाना चाहिए।
जालंधर बंध के लाभ:
- जालंधर बंध के अभ्यास से प्राण वायु का संचरण सही तरीके के साथ होता है।
- गर्दन की मांसपेशियों में रक्त संचार सही ढंग से होने लगता है ।
- जालंधर बंध को करने से मन में दृढ़ता आती है ।
- कण्ठ की रुकावट दूर हो जाती है ।
- रीढ़ की हड्डियों में खिचाव पैदा होने से रक्त संचार तेजी से होने लगता है।
- जालंधर बंध नियमित रूप से करते रहने से मस्तिष्क, आँख, नाक, कान आदि के संचालन निर्बाध और स्वस्थ बना रहता है।
- शरीर की धमनियों को स्वस्थ बनाकर रखने का अद्भुत विकल्प है जालंधर बंध।
सावधानियां:
आंतरिक कुंभक लगा होना चाहिए तथा निरंतर रेचन क्रिया के बाद कुंभक लगाते हुए ही जालंधर बंध का अभ्यास किया जा सकता है |गले में दर्द हो रहा हो या किसी प्रकार की तकलीफ हो तो जालंधर बंध नहीं करना चाहिए।
बल पूर्वक या जबरदस्ती इसको करने प्रयास बिलकुल भी न करें।
सर्दी-जुकाम की स्थिति में भी जालंधर बंध नहीं करना चाहिए।
बंध शब्द का शाब्दिक अर्थ:
अगर आप अंदर से शक्तिशाली बनना चाहते हो तो- आप को समझना होगा कि योग की भाषा में बंध किसे कहते हैं ? बंध शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है बांधना अथवा कड़ा करना मुद्रा का आध्यात्मिक ( यौगिक )अर्थ है सम्मेलन या सम्मिलन हठ योग क्रियाओं में बंध और मुद्राओं का बहुत महत्व होता है शरीर में जिन सात चक्रों की बात मानी जाती है उन चक्रों को खोलने का या उन तक पहुंचने का या उन्हें जागृत करने का विकल्प आसन, बंध और मुद्राओं तथा प्राणायाम में ही निहित है |
कुंडलिनी:
मनुष्य के शरीर में गुदा के समीप ही मूलाधार चक्र जिसमें कुंडलिनी शक्ति सुप्त अवस्था में पड़ी रहती है वह कुंडलिनी ही गुप्त शक्तियों का केंद्र है कुंडलिनी शक्ति के जागृत हो जाने पर जीवात्मा का परमात्मा से मिलन हो जाता है | कुंडलिनी को जगाने की विधि से समझने से पहले बंध, मुद्राओं, आसन और प्राणायाम को समझना और उनका अभ्यास करना आवश्यक है |
1- मूल बंध 2- जालंधर बंध और 3- उड्डयान बंध:
आपको यहां यह बताना आवश्यक है कि बंध तीन प्रकार के होते हैं मुख्य रूप से 1- मूल बंध 2- जालंधर बंध और उड्डयान बंध तथा चौथी स्थिति को महा बंध कहते हैं | महा बंध में यह तीनों - मूल, जालंधर और उद्यान बंध एक साथ लगाना चाहिए यह स्थिति महाबन्ध की स्थिति कहलाती है |
आसनों के बाद या आसनों के साथ:
यहां एक बता स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि बंध हमेशा आसन के बाद ही लगाना चाहिए परंतु बंद आसनों के साथ भी लगाए जा सकते हैं तथा प्राणायाम के साथ बंध लगाने से शरीर की शक्ति में अत्यधिक वृद्धि होती है, आपके शरीर में अत्यधिक ऊर्जा का संचार होता है जब आप प्राणायाम के साथ बंध लगाते हैं |
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