योग लगातार करते रहने की प्रक्रिया है
योग लगातार करते रहने की प्रक्रिया है
अक्सर देखने में आया है कि लोग योग को सिर्फ दो या चार दिन करके अपना कार्य पूर्ण मान लेते हैं परन्तु हम आपको यह बता देना चाहते हैं कि योग एक, दो या चार दिन नहीं बल्कि लगातार करते रहने की प्रक्रिया है | योग के नियमित अभ्यास के द्वारा ही किसी बड़े बदलाव को महसूस किया जा सकता है हालांकि यह सच है की योग के एक दिन के अभ्यास से भी शारीर और मन में कुछ न कुछ बदलाव जरुर आता है परन्तु उस बदलाव के बड़े अंतर को महसूस कर पाने के लिए लगातार आभ्यास का करना आवश्यक है |
बीमारियाँ धीरे-धीरे कम होती चली जायेंगी
सामान्य रूप से कहें तो योग को लोग सिर्फ एक उत्सव के रूप में मनाते हैं जो कि या तो वह 21 जून विश्व योग दिवस पर या फिर किसी अन्य दो, चार अवसरों में जब किसी सामाजिक कार्यकर्त्ता के द्वारा आयोजित अवसरों पर परन्तु आपको यह ज्ञात होना चाहिये की योग "सैलीब्रेशन नहीं बल्कि समर्पण है" तन और मन दोनों से ही पूरे समर्पण के साथ वह भी किसी योग गुरु के मार्गदर्शन में एकदम सामान्य और साधारण प्रयास के द्वारा | लगातार योग के अभ्यास के द्वारा आप देखेंगे माँसपेशियों में दृढ़ता, रक्त के संचार में आवश्यक बदलाव तथा मानसिक उत्कृष्टता की ओर आप धीरे - धीरे बढ़ने लगेंगे कुछ ही दिनों में आप महसूस करेंगे कि आपकी बीमारियाँ धीरे-धीरे कम होती चली जायेंगी और आपका शारीर बेहद हल्का महसूस कर पाएंगे तथा मानसिक रूप से भी आप एकदम तनाव मुक्त महसूस करेंगे |
योग को अपनी दिनचर्या में शामिल करें
इसी प्रकार आप धीरे-धीरे देखेंगे कि आप पूरी तरह संतुलित होते चले जायेंगे और आप विभिन्न प्रकार के कार्यों में भी दक्षता को प्राप्त करने के अधिकारी हो जायेंगे, भगवान् श्री कृष्ण ने भी गीता में कहा है की "योगः कर्मसु कौशलं" अर्थात योग से कर्म में कुशलता आती है इसलिए मेरा सभी योग साधकों से अनुरोध है कि योग को अपनी जीवन शैली का हिस्सा बनायें और प्रतिदिन एक घंटे का समय निकाल कर योग को अपनी दिनचर्या में शामिल करें | योग को अपने जीवन का हिस्सा बनायें ठीक उसी प्रकार जैसे - भोजन करना , नहाना , मलत्याग , सोना आदि आपके जीवन का हिस्सा है | आपका जीवन बहुमूल्य है इसको स्वस्थ रख कर ही आप जीवन की हर ख़ुशी को पाने की कोशिश कर सकते हो, स्वास्थ्य के बिना किसी भी चीज के बारे में नहीं सोचा जा सकता, सब कुछ व्यर्थ है |
एक दिन, एक वर्ष या फिर एक जन्म में भी आवश्यक नही
वैसे तो योग का अंतिम लक्ष्य इस भव सागर से मुक्ति है जन्म मृत्यु के बंधन से बाहर अर्थात स्वर्ग लोग की प्राप्ति को माना गया है यह सब एकदिन में या एक वर्ष या फिर जरुरी नही कि एक जीवन में ही संभव हो परन्तु निरंतर योगाभ्यास का परिणाम जरुर ही जन्म मृत्यु के बंधन से मुक्ति संभव है |
इस लेख को और अधिक बड़ा करके मै आपको और अधिक थकाना नहीं चाहता परन्तु मेरा आशय शायद आपको समझ आ गया होगा, योग में सिद्धि के लिए आपको योग के प्रति समर्पित भाव से निरंतर अभ्यास के साथ आगे बढ़ते रहना चाहिए इससे आपको स्वस्थ्य लाभ के साथ ही जीवन के अनेक श्रेष्ठतम शीर्ष उपादानों की प्राप्ति संभव है |
जय दिव्यदर्शन योग...
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