उड्डयान बंध : पाचन शक्ति धधक उठेगी, होगा ऊर्जा का संचार-






बंध शब्द का शाब्दिक अर्थ

अगर आप अंदर से शक्तिशाली बनना चाहते हो तो- आप को समझना होगा कि योग की भाषा में बंध किसे कहते हैं ? बंध शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है बांधना अथवा कड़ा करना मुद्रा का आध्यात्मिक ( यौगिक )अर्थ है सम्मेलन या सम्मिलन हठ योग क्रियाओं में बंध और मुद्राओं का बहुत महत्व होता है शरीर में जिन सात चक्रों की बात मानी जाती है उन चक्रों को खोलने का या उन तक पहुंचने का या उन्हें जागृत करने का विकल्प आसन, बंध और मुद्राओं तथा प्राणायाम में ही निहित है | 

कुंडलिनी

मनुष्य के शरीर में गुदा के समीप ही मूलाधार चक्र जिसमें कुंडलिनी शक्ति सुप्त अवस्था में पड़ी रहती है वह कुंडलिनी ही गुप्त शक्तियों का केंद्र है कुंडलिनी शक्ति के जागृत हो जाने पर जीवात्मा का परमात्मा से मिलन हो जाता है | कुंडलिनी को जगाने की विधि से समझने से पहले बंध, मुद्राओं, आसन और प्राणायाम को  समझना और  उनका अभ्यास करना आवश्यक है |



1- मूल बंध  2- जालंधर बंध और 3- उड्डयान बंध

आपको यहां यह बताना आवश्यक है कि बंध तीन प्रकार के होते हैं मुख्य रूप से 1- मूल बंध  2- जालंधर बंध और उड्डयान बंध  तथा चौथी स्थिति को महा बंध कहते हैं  | महा बंध  में यह तीनों - मूल, जालंधर और उद्यान बंध एक साथ लगाना चाहिए यह स्थिति महाबन्ध की स्थिति कहलाती है |

आसनों के बाद या आसनों के साथ

यहां एक बता स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि बंध हमेशा आसन के बाद ही लगाना चाहिए परंतु बंद आसनों के साथ भी लगाए जा सकते हैं  तथा प्राणायाम के साथ बंध लगाने से  शरीर  की शक्ति में अत्यधिक वृद्धि होती है, आपके शरीर में अत्यधिक ऊर्जा का संचार होता है जब आप प्राणायाम के साथ बंध लगाते हैं |

यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि- बहिर्कुंभक कुंभक के बिना उद्यानबंध का अभ्यास नहीं किया जा सकता याद रहे - बहिर्कुंभक कुंभक यानि पूरी सांस बाहर छोड़ कर पेट को पूरी शक्ति के साथ अंदर की ओर खींचना है |

यहां एक बात यह और समझ लेना चाहिए जब आप उड्ड्यान बंध लगा रहे हैं तो उससे पहले अग्निसार क्रिया का विशेष महत्व है | अग्निसार क्रिया के बाद ही उड्ड्यान बंध लगाएं |



उड्ड्यान बंध लगाने की विधि :

उड्ड्यान बंध का सीधा सा अर्थ है आंतों का संकुचन याआंतों में खिंचाव डालना जैसा पहले बताया जा चुका है कि पद्मासन, वज्रासन या सुखासन  की स्थिति में शांत मुद्रा में बैठ जाएं तथा लंबी छोड़ सांस बाहर की ओर छोड़ना चाहिए तथा बहिर्कुंभक के साथ ही (पूरी सांस बाहर निकल जाने के बाद) पेट को ओर पूरी शक्ति के साथ अंदर की ओर खींचना है इस दौरान आपका बहिर्कुंभक लगा हुआ होना चाहिए और ऐसा महसूस करना चाहिए कि हमारा पूरा पेट अंदर ही अंदर रीड की हड्डी से चिपक गया है | उड्ड्यान बंध लागते समय अपना पूरा ध्यान विशुद्धि चक्र पर केन्द्रित करना और ध्यान रखना चाहिए कि आपकी कमर से लेकर गर्दन तक का पूरा शरीर एकदम सीधा रहे |

No comments

स्वीकृति 24 घंटों के बाद

@ 2018 सर्वाधिकार दिव्य दर्शन योग सेवा संस्थान (रजि.) के अधीन. Powered by Blogger.