दिव्यदर्शन योग


योग और ध्यान के साथ - साथ सम्पूर्ण शारीरिक, मानसिक, वैचारिक एवं व्यवहारिक स्वास्थ्य पूर्ण जीवन की स्थापना जो पूरी तरह से दवा एवं रोगमुक्त हो |

दिव्यदर्शन योग जैसा कि नाम से ही ज्ञात होता है "दिव्य" अर्थात वह छोटी  से छोटी प्रक्रिया जिसके करने मात्र से ही  इस समस्त ब्रंभाण्ड के अस्तित्व को समझा जा सकता है इसे हम योग या आध्यात्म कि भाषा में साक्षातकार  होना भी कह सकते हैं | आपका मन केन्द्रित हो जाता है और आप एकरूपता को स्थापित कर लेते हैं | क्यों कि यह अखंड सत्य है कि इस सृष्टि के कण - कण में तिनके - तिनके में वही ईश्वर रचा और बसा हुआ है जिसके हम अंश हैं , हमारी सत्ता हमारे आचरण और व्यवहार के कारण हमसे विस्थापित होती है हम अपने अस्तित्व को नहीं समझ पाते हैं और अपने व्यक्तित्व की चर्चा करने के प्रयत्न में दिन रात तल्लीन रहते हैं हमें अपनी शक्ति का बोध नहीं हो पाता और हम अपने स्वार्थ के पीछे दिन-रात अड़ें रहते हैं यही हमारी और हमारे पूरे मानव समाज की विवशता है | 

क्या हमारा यह मानव जीवन- हमारे सिर्फ और सिर्फ निजी स्वार्थों के लिए मिला है ? क्या हमारा अस्तित्व सिर्फ यही है जो हम अपनी इन नंगी आँखों से देख पाते हैं ? क्या हमारा यह शरीर हमारे अस्तित्व की सिर्फ एक कड़ी मात्र नहीं है ? पानी के बुलबुला सरीखा यह जीवन पाने के बाद भी हम अपने व्यक्तित्व को नहीं समझ पाते ? यह हमारी कमी है या नादानी ? सब कुछ पाने की पराकाष्ठा हमारे " भय का भूत है  | "  विचारों की संलिप्तता हमारी तनहाई  है जो अपने आपको अपने आपसे जुदा किये हुए है ! व्यवहारों  की संकीर्णता हमें अपने आपसे बौना बना रही है |  हम उस अखंड सत्ता का स्पर्श नहीं  कर पाते जो इस जीवन को तेजोमायी बना दे, प्रफ़्फुलित और उत्साहित बना दे और यह जीवन आनंद की उस पराकाष्ठा मे समा जाये जो इस जीवन को तीसरी आँख देने वाला हो और आपकी इन गंदी आँखों से वह पर्दा  उतार जाये जो आपको और आपके चरित्र को एक आईने की तरह निखार दे | जीवन को इस प्रकार की सजगता और समरसता देने की शक्ति का जो प्रयत्न है उसी का नाम "दिव्यदर्शन" योग है |

यह किसी चमत्कार की भाषा नहीं , यह आकार का स्वरूप है , यही बोलता है और कहता है "हम सम्पूर्ण है " हमारे अंदर सम्पूर्ण ब्रंभाण्ड व्याप्त है , और यही सही है , इसमें कोई अतिशयोक्ति की बात नहीं है |

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