ईश्वरीय चेतना मे परिवर्तित होने का नाम ही आध्यात्म है


हमारी आत्मा ईश्वर का ही एक अंश है 

"मानव चेतना का ईश्वरीय चेतना मे परिवर्तित होने का नाम ही आध्यात्म है |" यह सर्व विदित है तथा हमारे ऋषियों - मुनियों एवं महर्षियों ने भी यही  स्वीकार किया है कि "हमारी आत्मा ईश्वर का ही एक अंश है " और जब यह इस संसार में आने के बाद अपने असल स्वरूप "ईश्वरत्व" को त्याग देती है तो वह अधार्मिक या नास्तिक कहलाता है और उसका यह स्वरूप ही उसे जड़त्व की श्रेणी मे लाकर खड़ा कर देता है || 

इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि व्यक्ति दो प्रकार का होता है -
प्रथम- जड़ मनुष्य |
दूसरा- चेतन मनुष्य 

इसी को एक दूसरी तरह से भी कहा जा सकता है- प्रथम  (नास्तिक पुरुष) और दूसरा (आध्यात्मिक पुरुष) 

करुणा का भाव उत्पन्न होता है

हमारी वेदना हमारी चेतना का ही प्रमाण है जब व्यक्ति में करुणा का भाव उत्पन्न होता है और वह दूसरों के कष्ट से दुखी होता है और उस कष्ट को स्वयं का कष्ट महसूस कर उसको समाप्त करने के लिए प्रयत्न करता है तो स्वयं ही ईश्वरत्व को प्राप्त कर लेता है और वह ही ईश्वर का पर्याय बन जाता है |

दूसरों के सुखों में आनंदित होने लगते है

इसी प्रकार जब हम दूसरों के सुखों को अपना समझ कर उनसे आनंदित होने लगते है और उनमें विलीन हो जाते हैं तो भी वही भाव उत्पन्न होता है और वह ईश्वरत्व को प्राप्त कर लेता है परंतु ध्यान रखने योग्य बात यह है कि वह  सुख प्राप्त करता उस व्यक्ति के सुखों की  संवृद्धि में निरंतर सहायक भी बना रहे |

परम सत्ता के ही प्रमाण

इस संसार में उत्पन्न प्रत्येक जड़, चेतन या स्थावर स्वरूप वास्तव में उस परम सत्ता के ही प्रमाण हैं कि हम उनको किस स्वरूप में अपने मस्तिष्क में स्थापित कर पाते हैं, उनके अर्थ और यथार्थ को किस तरह से समझ पाते हैं | प्रत्येक में हमारे शरीर के ही भांति सम्पूर्ण श्रष्टि विद्यमान है प्रत्येक में वही प्रक्रिया संचालित होती है जो कि हमारे जड़ या चेतन शरीर में संचालित है | उदाहरण के लिए हम एक वृक्ष की प्रक्रिया का वर्णन करते हैं- जहां वृक्ष हमें सर्दियों मे ठंड से बचाते हैं वही गर्मियों में हमें शीतलता प्रदान करते हैं इसका तात्पर्य यह है कि उनका भी तापमान हमारी ही भांति निश्चित और सामान्य ही होता है, इसी प्रकार उनकी भी एक उम्र होती है, उनके भी भीतर एक प्रवाह होता है,  वह भी खुश होते हैं-वह भी रोते हैं- वह भी हमें संकेत देते है और तो और वह हमें जीवन देते हैं | 

आध्यात्म की पराकाष्ठा बंधनों से मुक्ति

साथियों वैसे तो आध्यात्म कि परिभाषा करना बहुत कठिन कार्य है परंतु समझना उससे भी कठिन है | जीवन की सात्विकता ही आध्यात्म का आधार है | आध्यात्म आपको विकृतियों से रोकता है , आध्यात्म आपको राग, द्वेष से मुक्त करता है, आध्यात्म आपको चिंतनशील बनाता है, आध्यात्म आपको भाय मुक्त करता है, आध्यात्म की पराकाष्ठा एकत्व, विलीनत्व और भव सागर के बंधनों से मुक्ति पर समाप्त होती है | 

योगिराज- करनदेव 



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