संसार में तीन प्रकार के मानव हैं नास्तिक व भोगवादी, पुण्यात्मा, मुमुक्षु साधक





संसार में तीन प्रकार के मानव हैं नास्तिक व भोगवादी, पुण्यात्मा, मुमुक्षु साधक

संसार में तीन प्रकार के मानव हैं। प्रथम- नास्तिक व भोगवादी । द्वितीय- पुण्यात्मा। तृतीय- मुमुक्षु/साधक। जो मुमुक्षु / साधक हैं वे ही मानव जीवन का १००%उपयोग कर रहे हैं। आइए थोड़ा इनकी दिनचर्या पर चिंतन व मंथन करते हैं करते हैं-

नास्तिक व भोगवादी :

कुछ मानवों की मान्यता है कि खाओ-पियो-मौज करो।इस सिद्धांत के पावन के लिए किसी नियम की आवश्यकता नहीं है। कुछ भी खाओ। कुछ भी पिओ।जीवन में अपनी मौज मस्ती होनी चाहिए दुनिया जाए भाड़ में। इसमें वे अपनी भी हानि करते हैं और एक असभ्य समाज का भी निर्माण करके जाते हैं।

इनकी दिनचर्या है अभक्ष्य पदार्थ खाना जैसे मांस,अंडा,मछली, शराब,मांग आदि मादक पदार्थों का सेवन। लड़ाई-झगड़ा आतंक इनके शौक हैं। रात-दिन अपने इंद्रियों को संतुष्ट करने में लगे हैं।इसके पीछे इनका तर्क है जो मौज करनी है कर लो।मरने के बाद कौन जानता है कि कौन कहां गया? ईश्वर,धर्म,दया,करुणा, सत्संग, सदाचार सब बेकार की चीज है।चार दिन की जिन्दगी है खूब इंन्जाय करो कल को मर जायेंगे सब समाप्त हो जाना है।

पुण्यात्मा : 

ये वे लोग हैं जो दान-पुण्य, समाजसेवा, परोपकार में लगे हैं। इनकी धारणा है कि हमारा पुनर्जन्म होना है इसलिए खूब धन कमाओ। सम्पत्ति अर्जित करो।खाओ भी खिलाओ भी। धर्मशाला बनाओ।स्कूल चलाओ। संस्थाएं खोलो। सेमिनार करो। धूप-दीप जलाओ। तीर्थ-व्रत करो।चार धाम जाओ। मनौती मांगों।भंडारा मंदिर में करो। अपने नाम का पत्थर लगाओ।क्योंकि जितना यहां करके जायेंगे उसका लाभ हमारे बच्चों को मिलेगा।उनके लिए बैंक बैलेंस करो। मरने के बाद स्वर्ग मिलेगा और यहां हमारे बच्चे हमारी फोटो घर में लगायेगे ।फोटो पर फूल चढ़ायेंगे।हमारी पुण्य तिथि मनाई जायेगी। तालियां बजेंगी। जयकारा लगेगा और ऊपर स्वर्ग में अप्सराएं मिलेंगी। दोनों हाथों में लड्डू होंगे। इनकी मान्यता है कि ऐसा करने से हमारा अगला जन्म अच्छा होगा। माता-पिता आचार्य अच्छे मिलेंगे। पुनर्जन्म से आगे भी कुछ है इनको न पता है और न उसके बारे में जानने की इच्छा रहती है।ये लोग अच्छे तो बहुत हैं। इनकी समाज में आवश्यकता भी है मगर ये अज्ञानता में केवल इस संसार में सिर्फ लोकेष्णा भाव से प्रेरित प्रसिद्धि पाने के उद्देश्य से समय व्यतीत कर रहे हैं। इन्हें भी बार-बार जन्म व मृत्यु का घोर सामना करना पड़ेगा।

मुमुक्षु /साधक : 

ये वो महान दिव्यात्मायें हैं जो मानव जीवन का १००% सदुपयोग करते हैं।ये बचपन से ही सोचा करते हैं-
(१) मैं कौन हूं ?
(२) संसार क्या है ?
(३) मैं इस संसार में किस लिए आया हूं ?
(४) मुझे संसार में किसने और क्या करने भेजा है ?
(५) मैं क्या करता रहा हूं ?
(६) संसार,आत्मा, परमात्मा का स्वरूप क्या है?

इस विचारों का उत्तर पाने के लिए ये लोग सत्संग,स्वाध्याय, विद्वानों का संग करते हैं।विद्वान उन्हें यह,नियम,आसन, प्राणायाम,प्रत्याहार,धारणा,ध्यान का प्रशिक्षण देते हैं। इस प्रकार वे निरंतर योगाभ्यास द्वारा जन्म -मरण के चक्र को ही समाप्त कर देते हैं और ३१नील,१०खरब और ४०अरब वर्ष की एक निश्चित अवधि तक सच्चिदानन्द परमात्मा के आनंद में रहकर चौबीस प्रकार का हर सुख भोगते हैं। इसी का नाम मोक्ष है। मोक्ष की इच्छा रखने वालों को ही मुमुक्षु कहते हैं। यही पर आकर मानव जीवन का असली उद्देश्य पूरा होता है। ईश्वर करे धरती के सभी मानव सौ प्रतिशत जीवन का सदुपयोग करें। स्वाध्याय सत्संग संध्या साधना को दिनचर्या का आवश्यक अंग बनाकर अपने जीवन को कल्याणकारी बनाएँ।

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