सत्य का आचरण पापों को नष्ट कर देता है।



सत्य का आचरण पापों को नष्ट कर देता है। 

ऋतस्य धीतिर्वृजनानि हन्ति। (ऋग्वेद-4/23/8)

मनुष्य के लिए सत्य की रक्षा से बढ़कर और कोई धर्म नहीं है। जो असत्य भाषण करता है उसके अग्निहोत्र, तप, स्वाध्याय आदि सारे शुभ कर्म निष्फल हो जाते हैं। बुद्धिमान लोगों ने संसार सागर को तरने के लिए सत्य को ही सर्वश्रेष्ठ साधन बतलाया है। जब आप सत्य पथ से डगमगाने लगें और प्रलोभन आपको सताने लगे तब सत्यवादी हरिश्चन्द्र का स्मरण अवश्य कर लेना जिन्होंने अनेकों संकट आने पर भी सत्य को नहीं छोड़ा। 

संसार में जो भी कुछ सुख सामग्री है, वह सत्य से ही प्राप्त होती है। सत्य से ही सूर्य तपता है, सत्य से ही अग्नि जलती है, सत्य से ही वायु चलती है। सत्य से ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है, अतः सत्य को कभी नहीं छोड़ना चाहिए।

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