शांति के लिए मन की आँखें खोलो
शांति के लिए मन की आँखें खोलो
शरीर की आँखें खोलेंगे, तो अशांति बढ़ेगी। मन की आँखें खोलेंगे, तो शांति बढ़ेगी। मन की आँखें भी खोलें।
मोहनलाल और सुरेन्द्र दो पड़ोसी थे। एक सोसाइटी में पास पास रहते थे। अपने अपने काम में मस्त थे। दोनों प्रसन्न थे। फिर एक दिन मोहनलाल ने सोचा कि यह मेरा पड़ोसी सुरेन्द्र क्या करता है, इसकी थोड़ी खोज बीन तो की जाय। ऐसा सोच कर उसने अपने पड़ोसी सुरेन्द्र के आचार विचार व्यवहार की जानकारी करना शुरु किया। कुछ दिनों में उसे पता चला कि मेरा पड़ोसी सुरेन्द्र शराब पीता है। अंडे मांस खाता है। जुआ खेलता है। रिश्वत लेता है। और भी गड़बड़ के कुछ काम करता है।
जैसे जैसे उसे सुरेन्द्र के दोष पता लगते गए, वैसे-वैसे उसके मन में हलचल होने लगी। उसकी अशांति बढ़ने लगी, और शांति कम होने लगी।
फिर एक दिन मोहनलाल की भेंट अचानक एक महात्मा जी से हुई। मोहनलाल ने अपनी समस्या = मन की अशांति, महात्मा जी को बताई और उसका समाधान पूछा। महात्मा जी ने मोहनलाल से पूरे घटनाचक्र की जानकारी ली। उन्होंने तुरंत अशांति का कारण समझ लिया। और मोहनलाल को समझाया, - मोहनलाल ! यदि तुम शरीर की आँखें खोले रखोगे, संसार की ओर ही देखते रहोगे, तो तुम्हारी अशांति बढ़ेगी। क्योंकि "संसार इसी का नाम है, जहां पर हर समय राग द्वेष मोह माया के व्यवहार चलते ही रहते हैं।" ये सब व्यवहार दुखदायक और अशांति को बढ़ाने वाले हैं। ऐसे दुखदायक व्यवहारों को देखकर अशांति नहीं बढ़ेगी, तो और क्या होगा? यदि तुम शांति चाहते हो, तो शांति के स्रोत परमात्मा का ध्यान किया करो। परमात्मा का ध्यान मन की आंखों से होता है। प्रतिदिन कुछ समय तक, शरीर की आँखें बंद करो, संसार की चिंता छोड़ो। मन की आंखें खोलो। मन से परमात्मा को देखने का प्रयत्न करो। जब तुम्हें अंदर से, मन की आंखों से परमात्मा का दर्शन अर्थात् उसकी अनुभूति होगी, तब तुम्हें आनंद ही आनंद होगा। पूर्ण शांति मिलेगी। इसलिए हर रोज सुबह शाम दोनों समय एकांत में बैठकर परमात्मा का ध्यान किया करो।
मोहनलाल पर महात्मा जी के उपदेश का बहुत अच्छा प्रभाव पड़ा। उसी दिन से मोहनलाल ने संसार की ओर ताँक झाँक बंद कर दी। और प्रतिदिन सुबह शाम नियमित रूप से एकांत में बैठकर परमात्मा का ध्यान करना आरंभ कर दिया। धीरे-धीरे उसकी अशांति कम होती गई, और शांति बढ़ती गई। कुछ मास के पश्चात वह पहले जैसा प्रसन्न और आनंदित हो गया।
प्रिय सज्जनो! आप भी मोहनलाल जैसी गलतियाँ करते होंगे। यदि करते हैं, तो इस कथा से शिक्षा लेकर उन गलतियों को बंद कर देवें। मोहनलाल की तरह परमात्मा का ध्यान प्रतिदिन दोनों समय किया करें। कम से कम 20 मिनट सुबह और ऐसे ही 20 मिनट शाम को किया करें। इससे अधिक समय लगाएँ तो और भी अच्छा रहेगा। अवश्य ही आपका कल्याण होगा।
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