वात, पित्त, कफ, प्रकृति लक्षण एवं होने वाले रोग से बचाव


वात प्रकृति वाले व्यक्ति के लक्षण 

1. शारीरिक गठन - 
वात प्रकृति का शरीर प्राय: रूखा, फटा-कटा सा दुबला-पतला होता है, इन्हें सर्दी सहन नहीं होती। 

2. वर्ण - 
वात प्रकृति का शरीर अधिकतर काला रंग वाला होता है । 



3. त्वचा - 
त्वचा रूखी एवं ठण्डी होती है फटती बहुत है पैरों की बिवाइयां फटती हैं हथेलियाँ और होठ फटते हैं, उनमें चीरे आते हैं अंग सख्त व शरीर पर उभरी हुई बहुत सी नसें होती हैं । 

4. केश - 
वात प्रकृति का शरीर मे बाल रूखे, कड़े, छोटे और कम होना तथा दाढ़ी-मूंछ का रूखा और खुरदरा होना । 

5. नाखून - 
वात प्रकृति का शरीर में अंगुलियों के नाखूनों का रूखा और खुरदरा होना । 

6. आंखें - वात प्रकृति व्यक्ति में नेत्रों का रंग मैला  होता है। 

7. जीभ - वात प्रकृति व्यक्तियों की जीभ मैली  है |

8. आवाज - 
कर्कश व भारी, गंभीरता रहित स्वर, अधिक बोलता है । 

9. मुंह - वात प्रकृति व्यक्तियों का मुंह अधिक सूखता है । 

10. स्वाद - 
वात प्रकृति व्यक्ति में मुंह का स्वाद फीका या खराब मालूम होना । 

11. भूख - 
भूख कभी ज्यादा कभी कम, पाचन क्रिया कभी ठीक रहती है तो कभी कब्ज हो जाती है, विषम अग्नि, वायु बहुत बनती है । 

12. प्यास - वात प्रकृति व्यक्ति में प्यास कभी कम, कभी ज्यादा । 

13. मल - 
वात प्रकृति व्यक्ति में उनका माल रूखा, झाग मिला, टूटा हुआ, कम व सख्त, कब्ज की प्रवृत्ति वाला होना । 

14. मूत्र - 
वात प्रकृति व्यक्ति में मूत्र का पतला जल के समान होना या गंदला होना, मूत्र में रूकावट की शिकायत होना । 

15. पसीना - 
वात प्रकृति व्यक्ति में कम व बिना गन्ध वाला पसीना । 

16. नींद - 
नींद कम आना, ज्यादा जम्हाइयां आना, सोते समय दांत किटकिटाने वाला । 

17. स्वप्न - 
वात प्रकृति व्यक्ति अक्सर आकाश में उड़ने के सपने देखना । 

18. चाल - तेज चलने वाला होता है । 

19. पसन्द -नापसन्द -
सर्दी बुरी लगती है, शीतल वस्तुयें अप्रिय लगती हैं, गर्म वस्तुओं की इच्छा अधिक होती है मीठे, खटटे, नमकीन पदार्थ विशेष प्रिय लगते हैं । 

20. नाड़ी की गति
 टेढ़ी-मेढ़ी (सांप की चाल के समान) चाल वाली प्रतीत होती है, तेज और अनियमित नाड़ी । 

पित्त प्रकृति वाले व्यकित के लक्षण 

1. शारीरिक गठन - 
नाजुक शिथिल शरीर होता है इन्हें गर्मी सहन नहीं होती ।

2. वर्ण - पीला

3. त्वचा - 
त्वचा पीली एवं नर्म होती है फुंसियों और तिलों से भरी हुई अंग शिथिल; हथेलियाँ, होठ, जीभ, कान आदि लाल रहते हैं ।

4. केश - 
बालों का छोटी उम्र में सफेद होना व झड़ना, रोम बहुत कम होना ।

5. नाखून - नाखून लाल  दिखाई पड़ते हैं  |



6. आंखें - लाल

7. जीभ - लाल

8. आवाज - स्पष्ट, श्रेष्ठ वक्ता

9. मुंह - कण्ठ सूखता है ।

10. स्वाद - 
मुंह का स्वाद कड़वा रहना, कभी-कभी खट्टा होना, मुंह व जीभ में छाले होना ।

11. भूख - 
भूख अधिक लगती है, बहुत सा भोजन करने वाला होता है, पाचन शक्ति अच्छी होती है ।

12. प्यास - प्यास अधिक लगती है ।

13. मल - 
मल का अधिक पतला व पीला होना, जलनयुक्त होना, दस्त की प्रवृत्ति ।

14. मूत्र -
मूत्र कभी गहरा पीला होना, कभी लाल होना, मूत्र में जलन होना ।

15. पसीना -
पसीना बहुत कम आना, गर्म और दुर्गन्धयुक्त पसीना ।

16. नींद - निद्रानाश ।

17. स्वप्न -
अग्नि, सोना, बिजली, तारा, सूर्य, चन्द्रमा आदि चमकीले पदार्थ देखना ।

18. चाल -
साधारण किन्तु लक्ष्य की ओर अग्रसर चाल वाला होता है ।

19. पसन्द -
गर्मी बुरी लगती है और अत्यधिक सताती है, गर्म प्रकृति वाली चीजें पसंद नहीं आती, धूप और आग पसंद नहीं, शीतल वस्तुयें यथा-ठंडा जल, बर्फ, ठण्डे जल से स्नान, फूलमाला आदि प्रिय लगते हैं, कसैले, चरपरे और मीठे पदार्थ प्रिय लगते हैं ।

20. नाड़ी की गति -
कूदती हुई (मेढ़क या कौआ की चाल वाली), उत्तेजित व भारी नाड़ी होना । 


कफ प्रकृति वाले व्यक्तियों मे होने वाले लक्षण 

1. शारीरिक का गठन - 
 सुडौल, चिकना, मोटा शरीर होता है, इन्हें सर्दी अधिक कष्ट देती है ।

2. वर्ण - कफ प्रकृति वाले  लोग सामान्य रूप से गोरे वर्ण वाले होते हैं  |

3. त्वचा - 
कफ प्रकृति वाले  लोग चिकनी त्वचा वाले तथा पानी से गीली हुई सी नम त्वचा होती है, अंग सुडौल और सुन्दर होते हैं |

4. केश - 
कफ प्रकृति वाले  लोग घने, घुंघराले, काले केश वाले होते हैं ।

5. नाखून - इनके नाखून चिकने होते हैं |

6. आंखें - सफेद दिखती हैं |

7. जीभ - सफेद रेग के लेप वाली

8. आवाज - 
कफ प्रकृति वाले  लोग मधुर बोलने वाले होते है |

9. बलगम स्राव- 
मुंह - मुंह या नाक से बलगम अधिक निकलता है ।

10. स्वाद - 
मुंह का स्वाद मीठा-मीठा सा रहना, कभी लार का बहना । 

11. भूख - 
भूख कम लगती है, अल्प भोजन से तृप्ति हो जाती है, मन्दागिन रहती है ।

12. प्यास - प्यास कम लगती है ।

13. मल - 
सामान्य ठोस मल, मल में चिकनापन या आंव का आना ।

14. मूत्र - 
सफेद सा, मूत्र की मात्रा अधिक होना, गाढ़ा व चिकना होना ।

15. पसीना - सामान्य पसीना, ठंडा पसीना ।

16. नींद - 
नींद अधिक आना, आलस्य और सुस्ती आना ।

17. स्वप्न में - 
नदी, तालाब, जलाशय, समुद्र आदि देखना ।

18. चाल - 
धीमी, स्थिर (एक जैसी) चाल वाला होता है ।

19. पसन्द - सर्दी बुरी लगती है और बहुत कष्ट देती है, धूप और हवा अच्छी लगती है, नम मौसम में भय लगता है, गरमा गरम भोजन और गर्म पदार्थ प्रिय लगते हैं, गर्म चिकने चरपरे और कड़वे पदार्थों की इच्छा अधिक होती है । 

20. नाड़ी की गति - 
मन्द-मन्द (कबूतर या मोर की चाल वाली), कमजोर व कोमल नाड़ी।


वात-पित्त-कफ के लक्षण और रोग 

वात के बिगड़ने से होती हैं यह बीमारियाँ -

वात के बिगड़ने से मुख्यतः ८० विमारियां होती है जैसे हड्डियों और मांसपेशियों में जकड़न, याद दास्त की कमी ,फटी एड़िया, सूखी त्वचा, किसी भी तरह का दर्द, लकवा, भ्रम, विषाद, कान व आँख के रोग , मुख सूखना, कब्ज , आदि ।

लक्षण -
मुंह में कड़वाहट , फटी त्वचा , नाखुनो का खुरदरा होना , ठण्ड बर्दास्त ना होना , कार्य जल्दी करने की प्रविर्ती , रंग काला , अनियमित पाचन , नीद कम आना , खट्टा व मीठे चीज के खाने की इच्छा करना , मैले नेत्र रूखे बाल ।
  • नाड़ी की गति तेज व अनियमित , टेढ़ी-मेढ़ी (सर्पाकार ) होती है ।
  • इलाज - तेल की मालिश व चूना

पित्त के बिगड़ने से होती हैं यह बीमारियाँ

 पित्त से लगभग ४० विमारियां होती है जैसे – शरीर में जलन , खट्टी डकार , दुर्गन्धयुक्त अधिक पसीना , लाल चकत्ते निकलना , पीलिया , मुँह का तीखापन , गल्पाक , गुदा में जलन , आँखों में जलन , मुंख की दुर्गन्ध, मुंह के छाले आदि ।

लक्षण -
गुस्सा आना , भूख-प्यास ज्यादा लगना, गर्मी सहन ना होना , बार-बार पेशाब जाना ,पीली त्वचा, बाल जल्द सफ़ेद होना , मूत्र में जलन , धूप-आग बुरी लगती है ।

  • इलाज :- देशी गाय का घी , त्रिफला ।
  • नाड़ी की गति कूदती ( मेढक या कौवे चाल वाली ) ,उत्तेजित व भारी होती है ।

कफ के बिगड़ने से होती हैं यह बीमारियाँ

कफ से लगभग २० रोग होते है जैसे – आलस्य , गल्कंड , विना खाए पेट भारी होना , बलासक, शरीर पर चकत्ते, हृदयोप्लेप ,मुंह का फीकापन आदि ।



लक्षण -
मोटापा , आलस्य, सब काम आराम से करते है , गुस्सा ना आना , किसी चीज को देर से समझना , मुंह से बलगम आना , भूख- प्यास कम लगना , चिकने नाख़ून व त्वचा , मधुरभाषी ।

  • नाड़ी :– मंद-मंद ( कबूतर या मोर चाल युक्त ), कमजोर व कोमल नाड़ी ।
  • इलाज :- गुड और शहद ।

सभी रोगों की शुरुआत मन्दाग्नि कम होने पर होती है ।
किसी औषधि से अच्छा उपवास है 

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