ब्रह्मचर्य के आधार स्तम्भ पर योग से इच्छा मृत्यु का वरदान



इच्छा मृत्यु
भीष्म पितामह को प्राप्त था इच्छा मृत्यु का वरदान 

  • योग से इच्छा मृत्यु का वरदान 
  • इच्छा मृत्यु का आधार ब्रह्मचर्य 
  • ब्रह्मचर्य का आधार जितेंद्रियता 
  • जितेन्द्रियता का आधार प्राणायाम
अर्थात् प्राण वश में होने से परम पिता परमेश्वर से इच्छा मृत्यु का वरदान मनुष्य को प्राप्त होता है। जिसका आधार होता है जितेंद्रियता, प्राणायाम,  ब्रह्मचर्य और योग |

हे परमेश्वर ! 
हे सच्चिदानंदानन्तस्वरूप ! 
हे नित्यशुद्धबुद्धमुक्तस्वभाव ! 
हे कृपानिधे न्यायकारिन् ! 
हे अज निरंजन निर्विकार ! 
हे सर्वान्तर्यामिन् ! 
हे सर्वाधार सर्वजगत्पित: सकलजगदुत्पादक ! 
हे अनादे विश्वम्भर सर्वव्यापिन् । 
हे करुणामृतवारिधे ! 

सवितुर्देवस्य तव यदों भूर्भुव: स्वर्वरेण्यम् भर्गोऽस्ति तद्वयं धीमहि दधिमहि धरेमहि घ्यायेम वा । कस्मै प्रयोजनायेत्यत्राह-हे भगवन्! य: सविता देव: परमेश्वरो भवानस्माकं धिय: प्रचोदयात् स एवास्माकं पूज्य उपासनीय इष्टदेवो भवतु। नातोऽन्यद्वस्तु भवत्तुल्यं भवतोऽधिकं च कंचित् कदाचिन्मन्यामहे। 

सत्ये रतानां सततं दान्तानाॉूर्ध्वरेतसाम्।
ब्रह्मचर्यं दहेद्राजन् सर्वपापान्युपासितम्।।

सत्येन लभ्यस तपसां ह्येष: आत्मा सम्यज्ञ जानेन ब्रह्मचर्यं नित्यं। अन्त: शरीरे ज्योतिर्मयो हि शुभ्रो य: पश्यन्ति यत् य: क्षीण दोषा:।।

योग मार्ग मनुष्य के लिये सर्वश्रेष्ठ उपलब्धियों को प्राप्त कराता है। मनुष्य जीवन को सुशोभित करने के लिये योग के सिवाय दूसरा कोई मार्ग नहीं है। कितने ही मत पंथ समुदाय आदि को बढ़ावा दे लो परन्तु जब तक वेदोक्त योग मार्ग को जीवन में नहीं अपनायेंगे, मनुष्य जीवन को सफल सुखद और उन्नत नहीं बना सकते। 

योग से इच्छा मृत्यु का वरदान

योग जीवन में सामान्य सुखों से लेकर विशेष सुखों (मोक्ष रूपी सुख) की प्राप्ति कराता है और यह देने वाला एक मात्र परम पिता परमेश्वर है, जो अखंड एक रस सर्वत्र विद्यमान होकर सभी प्राणियों का पालक, रक्षक और संहारक है। 

महर्षि पतञ्जलि प्रणीत योग दर्शन को आधीन मानते हुये तथा वेदों को सर्वोच्च प्रमाण मानते हुये आपसे योग की विशेषता को साझा करना चाहता हूँ।


योग में प्राणायाम नामक क्रिया मनुष्य के जितेन्द्रियता प्रदान करने के साथ साथ विश्व की विभिन्न महामारियों से बचाव का काम करता है।
  • प्राणायाम से मन इन्द्रियों पर विजय
  • मन इन्द्रियों की विजय से जीवन पर विजय
प्राणायाम करने से प्राण वश में होते
प्राणों के वश में होने से चित्त एकाग्र होता
चित्त की एकाग्रता से इन्द्रियों संयमित होती
इन्द्रियों के संयम से शारीरिक शक्तियाँ बढ़ती
शारीरिक शक्तियों से वीर्य आदि धातुएँ बढती
वीर्य लाभ शरीर को वज्र युक्त बना देता
वज्र शरीर से रोगविनाशक शक्ति प्राप्त होती हैं 

यही ब्रह्मचर्य रूपी महा व्रत है जो सामान्य मनुष्य को योगी ऋषि महर्षि आदि बना देता है। वीर्य लाभ से तेजस्वी ऋतम्भरा बुद्धि प्राप्त होती है

यही ऋतम्भरा बुद्धि मनुष्य को विशेष ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति कराती है और ब्रह्म ज्ञान ही मनुष्य को मुक्ति रूपी सुख को प्राप्त कराता है जिसके कारण इच्छा मृत्यु का वरदान परम पिता परमेश्वर उस असाधारण मनुष्य अर्थात् योगी को प्रदान करते हैं। 

यही कारण है कि आदि सृष्टि में मनुष्यों का आयु सामान्य सौ वर्ष से लेकर चार सौ वर्ष तक होता था जिसे आज के अल्पमति इन्द्रियराम मनुष्य कभी नहीं समझ सकते। 

अत: हम कह सकते हैं कि आदि सृष्टि से लेकर महर्षि दयानंद पर्यन्त जिसने योगी, महायोगी, ऋषि आदि महामानव हुए उनका ब्रह्मचर्य बल ही उनकी इच्छा मृत्यु का विशेष आधार रहा, चाहे उसमें गंगा पुत्र पितामह भीष्म हुए जिन्होने अखंड ब्रह्मचर्य का सेवन करके लगभग 170 वर्ष की आयु प्राप्त की या फिर अन्य ऋषि गण।

आज जो मानव युक्त शरीर प्राप्त कर रहे हैं और मन इन्द्रियों के ग़ुलाम बनकर शारीरिक भोग विलासिता में रत्त होकर अपनी मन्दमति एवं महामूर्खता के कारण योगी ऋषियों के महाव्रतों को नहीं समझ पा रहे उनको कभी समझ भी नहीं आयेगा परन्तु जिस दिन ब्रह्मचर्य व्रत को धारण करना सीख लेंगे उस दिन यह निश्चित ही स्पष्ट होना प्रारंभ हो जायेगा कि आज भी इच्छा मृत्यु जैसे महावरदानों को प्राप्त किया जा सकता है।
यह इच्छा मृत्यु का संक्षेप में वेदोक्त दृष्टि से समझाने का प्रयास किया, उम्मीद है कि बुद्धिमान मनुष्य इस थोड़े से ही बहुत कुछ समझ लेंगे। 
ओ३म् सच्चिदानंद परमात्मने नम:।
ओ३म् नित्यशुद्धबुद्ध परमात्मने नम:।।

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दिव्यदर्शन योग सेवा संस्थान (रजि.)
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