जानु सिरासन कैसे करें विधि एवं इसके लाभ
जानुशिरासन का शाब्दिक अर्थ 'जनू' अर्थात घुटना इसी प्रकार सिर का सीधा सा अर्थ आपके सिर से है | इस आसान मे अपने सिर को दोनों हाथो से पंजे को पकड़ते हुए घुटने से टच (छुआना ) होता है | यह प्रक्रिया बारी - बारी से दोनों पैरों के साथ दुहराना होता है | यह योग करना बहुत ही आसान है। बच्चों के लिए यह सबसे अच्छा योग आसन बन गया है। बेहतर अभ्यास के लिए इस योग मुद्रा के बाद पश्चिमोत्तानासन हो सकता है।
जानु सिरासन कैसे करें विधि
समतल भूमि पर बैठकर अपने पैरों को सामने की तरफ फैला दें| इसके बाद किसी एक पैर को मोड़कर एड़ी को अपने गुदा और अंडकोष के मध्य भाग से लगाकर रखें और तलुवे को दूसरी टांग से सटाकर रखें| इसके बाद प्राणायाम की पूरक क्रिया करें और सांस को बाहर छोड़ दें| इसके बाद पेट को अन्दर की तरफ खींच कर अपने दोनों हाथों से सीधे पैर के पंजो को पकड़ लें और अपने माथे को घुटने पर टिका दें | इस दौरान पैर बिल्कुल सीधा रहना चाहिए और प्राणायम की कुम्भक अवस्था को बनाये रखें|थकान महसूस होने पर पैरों को बदल कर क्रिया का अभ्यास करते रहें|जानुशिरासन करने से होने वाले लाभ
1. इस आसन को नियमित रूप से करने से घुटने, पीठ, कमर और टांगों की नसें व मांसपेशियाँ मजबूत हो जाती है|
2. पीठ व मेरुदंड में लचीलापन लाया जा सकता है जिससे उनमे होने वाले अनियमित दर्द खत्म हो जातें है|
3. इस आसन द्वारा श्वसन तंत्र निरोगी होता है|
4. इस आसन द्वारा वीर्य सम्बन्धी रोग या दोष ठीक किये जा सकते है|
5. मधुमेह के रोग भी दूर किये जा सकते है|
6. प्लीहा, यकृत, आंतों आदि के दोषों को खत्म किया जा सकता है साथ ही मोटापे की समस्या से भी छुटकारा पाया जा सकता है|
7. इस आसन द्वारा साइटिका का दर्द भी दूर किया जा सकता है|
8. उदर और आमाशय के रोग ठीक किये जा सकते है तथा पाचन तंत्र को मजबूत किया जा सकता है|
9. इस आसन द्वारा स्त्रियों में कामवासना को बढ़ाया जा सकता है तथा स्त्री पुरुष के गुप्तांगों को मजबूत बनाया जा सकता है |
10. रीढ़ की हड्डी से गुजरने वाली मूल रक्त नलिका के विकार दूर किये जा सकते है|
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