ब्रम्ही ब्रम्हा का वरदान

यह हर दृष्टि से हर वर्ग के लिए हितकर है तथा प्रकृति का मनुष्य को एक श्रेष्ठ अनुदान है । किसी न किसी रूप में इसका नियमित सेवन किया जाए तो हमेशा स्फूर्ति से भरी प्रफुल्ल मनःस्थिति बनाए रखती है ।





ब्राह्मी का प्रभाव मुख्यतः मस्तिष्क पर पडता है। यह मस्तिष्क के लिए एक पौष्टिक टॉनिक तो है ही साथ ही यह मस्तिष्क को शान्ति भी देती है। लगातार मानसिक कार्य करने से थकान के कारण जब व्यक्ति की कार्यक्षमता घट जाती है तो ब्राह्मी का आश्चर्यजनक असर होता है। ब्राह्मी स्नायुकोषों का पोषण कर उन्हें उत्तेजित कर देती है और हम पुनः स्फूर्ति का अनुभव करने लगते हैं।

ब्राह्मी मस्तिष्क, सफेद दाग, पीलिया, प्रमेह, खून की खराबी, खांसी, पित्त, सूजन, गले, दिल, मानसिक रोग जैसे पागलपन, कब्ज, गठिया, याददाश्त, नींद, तनाव, बालों आदि रोगो के लिए बेहतरीन औषिधि हैं।


मात्रा के अनुसार इसका सेवन करने से निर्बुद्ध, महामूर्ख, अज्ञानी भी श्रुतिधर (एक बार सुनकर जन्म भर न भूलने वाला) और त्रिकालदर्शी (भूतकाल, वर्तमान काल और भविष्य को जानने वाला) हो जाता है, व्याकरण को पढ़ने वाले अक्सर इस क्रिया को करते हैं।  ब्राह्मी घृत, ब्राही रसायन, ब्राही पाक, ब्राह्मी तेल, सारस्वतारिष्ट, सारस्वत चूर्ण आदि के रूप में प्रयोग किया जाता हैं। अग्निमंदता, रक्त विकार तथा सामान्य शोथ में यह तुरंत लाभ करती है। ब्राह्मी बुद्धि तथा उम्र को बढ़ाता है। यह रसायन के समान होती है। बुखार को खत्म करती है। सफेद दाग, पीलिया, प्रमेह और खून की खराबी को दूर करती है। खांसी, पित्त और सूजन को रोकती है। बैठे हुए गले को साफ करती है। ब्राह्मी का उपयोग दिल के लिए लाभदायक होता है। यह उन्माद (मानसिक पागलपन) को दूर करता है। ब्राह्मी कब्ज को दूर करती है।

ब्रम्ही की पहचान कैसे करें ?

ब्राह्मी हरे और सफेद रंग की होती है। ब्राह्मी का पौधा हिमालय की तराई में हरिद्धार से लेकर बद्रीनारायण के मार्ग में अधिक मात्रा में पाया जाता है। जो बहुत उत्तम किस्म का होता है। यह मुख्यतः जला सन्न भूमि में पाई जाती है इसलिए इसे जल निम्ब भी कहते हैं । विशेषतः यह हिमालय की तराई, बिहार, उत्तर प्रदेश आदि में नदी नालों, नहरों के किनारे पाई जाती है । गंगा के किनारे बारहों महीने हरी-भरी पाई जाती है । इसका क्षुप फैलने वाला तथा मांसल चिकनी पत्तियाँ लिए होता है । पत्तियाँ चौथाई से एक इंच लम्बी व 10 मिलीमीटर तक चौड़ी होती है । ये आयताकार या सु्रवाकार होती है तथा काण्ड व शाखाओं पर विपरीत क्रम में व्यवस्थित रहती हैं । फूल नीले, श्वेत या हल्के गुलाबी होते हैं, जो पत्रकोण से निकलते हैं । फल लंबे गोल आगे से नुकीले होते हैं, जिनमें छोटे-छोटे बीज निकलते हैं । काण्ड अति कोमल होता है । इसमें छोटे-छोटे रोम होते हैं व ग्रंथियाँ होती हैं । ग्रन्थि से जड़ें निकल कर भूमि पकड़ लेती हैं, जिस कारण काण्ड 2 से 3 फुट ऊँचा होने पर भी छोटा व झुका हुआ दिखाई देता है । ब्राह्मी का पौधा पूरी तरह से औषधीय है। इसके तने और पत्तियां मुलायम, गूदेदार और फूल सफेद होते हैं। ब्राह्मी की जड़ें छोटी और धागे की तरह पतली होती है। इसमें गर्मी के मौसम में फूल लगते हैं। यह पौधा नम स्थानो में पाया जाता है, तथा मुख्यत: भारत ही इसकी उपज भूमि है।


भारत वर्ष में विभिन्न नामों से जाना जाता है जैसे हिंदी में सफेद चमनी, संस्कृत में सौम्‍यलता, मलयालम में वर्ण, नीरब्राम्‍ही, मराठी में घोल, गुजराती में जल ब्राह्मी, जल नेवरी आदि, इसका वैज्ञानिकगुण कर्म संबंधी विभिन्न मत-महर्षि चरक के अनुसार ब्राह्मी मानस रोगों की एक अचूक गुणकारी औषधि है ।
सुश्रुत संहिता के अनुसार ब्राह्मी का उपयोग मस्तिष्क विकृति, नाड़ी दौर्बल्य, अपस्मार, उन्माद एवं स्मृति नाश में किया जाना चाहिए ।
भाव प्रकाश निघंटु के अनुसार ब्राह्मी मेधावर्धक है । नाम बाकोपा मोनिएरी(Bacapa monnieri) है। इस पौधे में हायड्रोकोटिलिन नामक क्षाराभ और एशियाटिकोसाइड नामक ग्लाइकोसाइड पाया जाता है। इसे बुद्धिवर्धक होने के कारण ‘ब्राह्मी’ नाम दिया गया है ।
मात्रा : 1 से 3 चम्मच ब्राह्मी के पत्तों का रस, ताजी हरी पत्तियां 10 तक सुखाया हुआ बारीक चूर्ण 1 से 2 ग्राम तक, पंचांग (फूल, फल, तना, जड़ और पत्ती) चूर्ण 3 से 5 ग्राम तक और जड़ के चूर्ण का सेवन आधे से 2 ग्राम तक करना चाहिए।

विभिन्न बीमारियों मेन प्रयोग-

अनिद्रा

अनिद्रा में ब्राह्मी चूर्ण 3 माशा (3 ग्राम) गाय के दूध के साथ देते हैं अथवा ब्राह्मी के ताजे 20-25 पत्रों को साफ गाय के आधा सेर दूध में घोंट छानकर 7 दिन तक देते हैं । वर्षों पुराना अनिद्रा रोग इससे ठीक हो जाता है ।


निद्राचारित या नींद में चलना 

ब्राह्मी, बच और शंखपुष्पी इनको बराबर मात्रा में लेकर ब्राह्मी के रस को 12 घंटे छाया में सुखाकर और 12 घंटे धूप में रखकर पूरी तरह से सुखाकर इसका चूर्ण तैयार कर लें। लगभग 480 मिलीग्राम से 960 मिलीग्राम सुबह और शाम को समान मात्रा में घी और शहद के साथ मिलाकर नींद में चलने वाले रोगी को देने से उसका स्नायु तंत्र मजबूत हो जाता है। इसका सेवन करने से नींद में चलने का रोग दूर हो जाता है।

मिर्गी में अपस्मार में 

मिर्गी तथा उन्माद में भी यह बहुत लाभकारी होती है । मिरगी के दौरों में यह विद्युत स्फुरण के लिए उत्तरदायी केन्द्र को शांत करते हैं इससे स्नायुकोषों की उत्तेजना कम होती है तथा दौरे धीरे धीरे घटते हुए लगभग बिल्कुल बंद हो जाते हैं । ब्राह्मी के स्वरस 1/2 चम्मच मधु के साथ अथवा चूर्ण को मधु के साथ दिया जाता है । प्रारंभ में ढाई ग्राम एवं प्रभाव न होने पर पाँच ग्राम तक दिया जा सकता है । मिर्गी के रोग में ब्राह्मी (जलनीम) से निकाले गये घी का सेवन करने से लाभ होता है। ब्राह्मी, कोहली, शंखपुष्पी, सांठी, तुलसी और शहद को मिलाकर मिर्गी के रोगी को पिलाने से मिर्गी से छुटकारा मिल जाता है।

अवसाद उदासीनता सुस्ती 

लगभग 10 ग्राम ब्राह्मी (जलनीम) का रस या लगभग 480 से 960 मिलीग्राम चूर्ण को लेने से उदासीनता, अवसाद या सुस्ती दूर हो जाती है।

बुद्धिवैकल्प, बुद्धि का विकास कम होना 

ब्राह्मी, घोरबच (बच), शंखपुष्पी को बराबर मात्रा में लेकर ब्राह्मी रस में तीन भावनायें (उबाल) देकर छाया में सुखाकर चूर्ण बना लें और रोजाना 1 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम को असमान मात्रा में घी और शहद के साथ मिलाकर काफी दिनों तक चटाने से बुद्धि का विकास हो जाता है।


पागलपन (उन्माद) में 

6 मिलीलीटर ब्राह्मी का रस, 2 ग्राम कूठ का चूर्ण और 6 ग्राम शहद को मिलाकर दिन में 3 बार पीने से पुराना उन्माद कम हो जाता है। 3 ग्राम ब्राह्मी, 2 पीस कालीमिर्च, 3 ग्राम बादाम की गिरी, 3-3 ग्राम मगज के बीज तथा सफेद मिश्री को 25 गाम पानी में घोंटकर छान लें, इसे सुबह और शाम रोगी को पिलाने से पागलपन दूर हो जाता है।
  • 3 ग्राम ब्राह्मी के थोड़े से दाने कालीमिर्च के पानी के साथ पीसकर छान लें। इसे दिन में 3 से 4 बार पिलाने से भूलने की बीमारी से छुटकारा मिलता है।
  • ब्राह्मी के रस में कूठ के चूर्ण और शहद को मिलाकर चाटने से पागलपन का रोग ठीक हो जाता है।
  • ब्राह्मी की पत्तियों का रस तथा बालवच, कूठ, शंखपुष्पी का मिश्रण बनाकर गाय के पुराने घी के साथ सेवन करने से पागलपन का रोग दूर हो जाता है।

खांसी, पित्त बुखार और पुराने पागलपन

3 ग्राम ब्राह्मी, 3 ग्राम शंखपुष्पी, 6 ग्राम बादाम गिरी, 3 ग्राम छोटी इलायची के बीज को पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को थोड़े-से पानी में पीसकर, छानकर मिश्री मिलाकर पीने से खांसी, पित्त बुखार और पुराने पागलपन में लाभ मिलता है।


हिस्टीरिया

हिस्टीरिया जैसे रोगों में यह तुरन्त प्रभावी होती है। 10-10 ग्राम ब्राह्मी और वचा को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर सुबह और शाम 3-3 ग्राम की मात्रा में त्रिफला के जल से खाने पर हिस्टीरिया के रोग में बहुत लाभ होता है।

चिन्ता तथा तनाव

चिन्ता तथा तनाव में ठंडाई के रूप में भी इसका प्रयोग किया जाता है, इसके अतिरिक्त किसी बीमार या अन्य बीमारी के कारण आई निर्बलता के निवारण के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। कुष्ठ और चर्म रोगों में भी यह उपयोगी है। खांसी तथा गला बैठने पर इसके रस का सेवन काली मिर्च तथा शहद के साथ करना चाहिए। यूनानी चिकित्सक इसका माजूम बनाकर खिलाते हैं, पर सर्वश्रेष्ठ स्वरूप चूर्ण का मधु के अनुपान के साथ सेवन है ।

बल्य रसायन

ब्राह्मी बल्य रसायन भी है इसलिए किसी भी प्रकार की गंभीर व्याधि ज्वर आदि के बाद निर्बलता निवारण के लिए इसका प्रयोग कर सकते हैं ।

कमजोरी 

40 मिलीलीटर केवांच की जड़ का काढ़ा सुबह-शाम सेवन करने से स्नायु की कमजोरी मिट जाती है। इसके जड़ का रस अगर 10-20 मिलीलीटर सुबह-शाम लिया जाए तो भी कमजोरी में लाभ होता है।

धातु क्षय (वीर्य का नष्ट होना)

15 ब्राह्मी के पत्तों को दिन में 3 बार सेवन करने से वीर्य के नष्ट होने का रोग कम हो जाता है। ब्रह्मी, शंखपुष्पी, खरैटी, ब्रह्मदंडी तथा कालीमिर्च को पीसकर खाने से वीर्य रोग दूर होकर शुद्ध होता है।

पेशाब करने में कष्ट होना (मूत्रकृच्छ)

ब्राह्मी के 2 चम्मच रस में, 1 चम्मच मिश्री मिलाकर सेवन करने से पेशाब करने की रुकावट दूर हो जाती है। 4 मिलीलीटर ब्राह्मी के रस को शहद के साथ चाटने से मूत्ररोग में लाभ होता है।


आंखों की बीमारी में

3 से 6 ग्राम ब्राह्मी के पत्तों को घी में भूनकर सेंधानमक के साथ दिन में 3 बार लेने से आंखों के रोग में लाभ होता है।

दिमाग की स्फूर्ति 

ब्राह्मी और बादाम की गिरी की एक भाग ,काली मिर्च का चार भाग लेकर इनको पानी में घोटकर छोटी- छोटी गोली बनाकर एक-एक गोली नियमित रूप से दूध के साथ सेवन करने पर दिमाग की स्फूर्ति बनी रहती है।

स्मरण शक्ति वर्द्धक

10 मिलीलीटर सूखी ब्राह्मी का रस, 1 बादाम की गिरी, 3 ग्राम कालीमिर्च को पानी से पीसकर 3-3 ग्राम की टिकिया बना लें। इस टिकिया को रोजाना सुबह और शाम दूध के साथ रोगी को देने से दिमाग को ताकत मिलती है। ब्राह्मी के ताजे रस और बराबर घी को मिलाकर शुद्ध घी में 5 ग्राम की खुराक में सेवन करने से दिमाग को ताकत प्रदान होती है।

याददाश्त, स्मृति दौर्बल्य तथा अल्पमंदता

याददाश्त, स्मृति दौर्बल्य तथा अल्पमंदता में ब्राह्मी स्वरस अथवा चूर्ण पानी के साथ या मिश्री के साथ देते हैं । एक सेर नारियल के तल में 15 तोला ब्राह्मी स्वरस मिलाकर उबालने पर ब्राह्मी तेल तैयार हो जाता है । इसकी मालिश करने से मस्तिष्क की निर्बलता व खुश्की दूर होती है तथा बुद्धि बढ़ती है ।

दिल की धड़कन

20 मिलीलीटर ताजी ब्राह्मी का रस और 5 ग्राम शहद को मिलाकर रोजाना सेवन करने से दिल की कमजोरी दूर होकर तेज धड़कन भी सामान्य हो जाती है। हृदयाघात के बाद दुर्बलता निवारण हेतु यह एक श्रेष्ठ टॉनिक है।

उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर)

ब्राह्मी के पत्तों का रस एक चम्मच की मात्रा में आधे चम्म्च शहद के साथ लेने से उच्च रक्तचाप ठीक हो जाता है।


कुष्ठ तथा अन्य चर्म रोगों में

वाह्य प्रयोगों में तेल के अतिरिक्त इसे कुष्ठ तथा अन्य चर्म रोगों में भी प्रयुक्त करते हैं

खांसी व् गले के रोग

खाँसी व गला बैठ जाने पर इसके स्वरस का काली मिर्च व मधु के साथ सेवन करते हैं । विभिन्न प्रकार के विषों तथा ज्वर में यह लाभ पहुँचाती है । उदासी निराशा भाव तथा अधिक बोलने से उत्पन्न हुए स्वर भंग में भी ब्राह्मी लाभकारी होती है ।


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